सेवा भारती कि पहल बना मिशाल; लॉकडाउन में यौनकर्मियों की जिंदगी

अब जबकि लॉकडाउन ख़त्म होकर री-ओपनिंग की तरफ कदम बढ़ा रहे हैं तो अब यह प्रश्न उठता है कि कहाँ कहाँ पर क्या क्या हुआ और कैसे हुआ? कौन कौन से काम धंधों पर क्या असर हुआ? समाज पर क्या असर होगा और क्या हुआ? हम कहाँ पर खड़े रहे? कौन किसके साथ खड़ा हुआ, इस लड़ाई में और कौन आने वाले समय में इस लम्बी लड़ाई में हमारे साथ होगा? हम दरअसल उस मोड पर हैं, जहाँ पर हम टूट सकते हैं और बन भी सकते हैं. हम वहां पर हैं जहाँ पर हमें देखना है कि एक समाज के रूप में हम कितने एक साथ हैं, सामाजिक संस्था के रूप में हम कहाँ पर हैं?



जब हमने कई कहानियां सुनी कि इसके साथ यह हुआ, उसके साथ यह हुआ तब समाज के एक बड़े वर्ग को हम भूल गए. हम भूल गए उस वर्ग को जो उपेक्षित है, परन्तु सबसे बड़ा बाज़ार भी है. वह अभिशप्त भी है और अनिवार्य भी. उस वर्ग में जो भी हैं वह हमारे साथ हैं भी और हम उनके खिलाफ भी हैं. वह प्रत्यक्ष भी हैं और वह छिपे हुए भी. दरअसल वह छिपे हुए ही हैं. हम चाहते हैं कि वह वर्ग छिपा रहे, वह हमारे समाज का हिस्सा न बनें. वह हमारे सामने न आएं! 


वह वर्ग समाज की एक हिंसा को भी खुद पर झेलता है. वह वर्ग है यौन कर्मियों का वर्ग! एक ऐसा वर्ग जो अपना चेहरा दिखा नहीं सकता, वह खुद को न ही व्यक्त कर सकता है और न ही अभिव्यक्त. जब हम व्यक्त और अभिव्यक्त न कर पाने वाले वर्ग के साथ आते हैं तो कई बार हमें लगता है कि हम कहाँ हैं? क्या हम इनकी पीड़ा के साथ हैं? या हम इन्हें पीडाओं का कारण समझते हैं? यह एक ऐसा प्रश्न है जिसका सामना करने के लिए हम सभी को तैयार रहना चाहिए.


अब जब लॉक डाउन हो गया है और यह भी तय है कि अभी यह समय लम्बा चलेगा तो ऐसे में उनके पास कौन आएगा और क्या होगा जिनका सारा कार्य ही देह के संपर्क के आधार पर होता है. संपर्क और दूरी के बीच यह पूरा वर्ग क्या करेगा से बड़ा प्रश्न है कि उनके साथ कौन आया? कौन सी संस्था उनकी मुसीबत के समय सामने आई? किस संस्था ने उनकी समस्या को समझा, उनकी पीड़ा को जाना!


अप्रेल में जब से यह लॉक डाउन चल रहा है तब से ही राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ, सेवा भारती के माध्यम से समाज के उन वर्गों तक पहुँचने के प्रयास में है जहाँ तक कोई नहीं पहुंचा है. यहाँ तक कि दिल्ली में तो दिल्ली सरकार के ही लोग सेवा भारती के सदस्यों के नंबर दे रहे हैं, जिससे राशन उन तक पहुँच सके.


अप्रेल में सेवा भारती के सदस्यों के पास एक कॉल आया जिसमें इन महिलाओं की बुरी आर्थिक स्थिति का उल्लेख था. यह पता चला कि दिल्ली में जीबी रोड में रहने वाली इन यौन कर्मियों के पास खाने पीने की समस्या है. यह कितना बड़ा दुर्भाग्य है कि यह न चाहते हुए भी यह वर्ग अनिवार्य भी है और दिन के उजाले में उपेक्षित भी.


क्या इस उपेक्षित वर्ग के पास सहायता पहुँची? यह भी एक प्रश्न था. प्रश्न इसलिए था क्योंकि हम जहाँ रोग के संक्रमण से बचने के लिए एक लड़ाई लड़ रहे हैं तो वहीं वह वर्ग एक और भेदभाव का सामना करता है और वह है सामाजिक भेदभाव.


परन्तु आश्चर्य यह हुआ कि एक खास वर्ग द्वारा स्त्री विरोधी कहा जाने वाला राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ इस सहायता के लिए आगे आया. और 3 अप्रेल को उन्होंने 986 यौन कर्मियों की सूची बनाई और उसके साथ उन्हें 250 जॉइंट्स में बांटा (अर्थात वह यौन कर्मियों के समूह, जो एक साथ रहते हैं.)


आरएसएस के महा सचिव अनिल गुप्ता ने एएनआई को बताया था कि उन्होंने 250 किट्स बांटी थीं. सेवा भारती के ही एक कार्यकर्ता का कहना था कि वह न केवल दैनिक मजदूरों को राशन मुहैया करा रहे हैं, बल्कि यौन कर्मियों को भी, क्योंकि इनके खाने पीने का कोई भी प्रबंध नहीं है.


सेवाभारती ने इन 250 जॉइंट्स के लिए जो किट्स बनाई थीं उनमें दस दिन तक के खाने का इंतजाम था. और उन्होंने यह भी आश्वस्त किया कि वह अगले सप्ताह फिर से संपर्क करेंगे.


सेवा भारती ने इस वर्ग के लिए जो कार्य किया है, उसके लिए पूरे समाज को उनका शुक्रगुजार होना ही चाहिए. कथित प्रगतिशील लोग जो स्त्रियों की स्थितियों पर तमाम आंसू बहाते हैं, वह अपने अपने घरों में बैठकर सरकार को कोस रहे हैं और जिन्हें स्त्री विरोधी कहा जाता है वह हर सम्भव सहायता देने के लिए तत्पर हैं.


कुछ कार्य शब्दों से परे होते हैं, सर्वथा परे,और सेवा भारती का यह कार्य निश्चित ही शब्दों से परे है!